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नई डेयरी नीति से होगा पशुपालन क्षेत्र का कायाकल्प
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उत्तर प्रदेश दुग्धशाला विकास एवं दुग्ध उत्पादन प्रोत्साहन नीति-2022 से पूरे डेयरी क्षेत्र का कायाकल्प हो जाएगा। इससे न केवल दूध और दूध से प्रसंस्कृत उत्पादों का उत्पादन बढ़ेगा। बल्कि पशु आहार के क्षेत्र में भी बूम आएगा। यही नहीं क्रमशः यह नीति स्वाभाविक तरीके से ‘अन्ना प्रथा’ पर नियंत्रण में भी मददगार बनेगी।

दूध के वाजिब दाम मिलने पर लोग बेहतर प्रजाति के गोवंश रखेंगे। ये लंबे समय तक पूरी क्षमता से दूध दें, इसके लिए संतुलित एवं पोषक पशुआहार देंगे। इस तरह पशु आहार में प्रयुक्त चोकर, चुन्नी, खंडा, खली की मांग बढ़ेगी। पशुओं के ये आहार मुख्य रूप से अलग-अलग फसलों के ही प्रोडक्ट होते हैं।

संतुलित एवं पोषक आहार की मांग बढ़ने से इस तरह की इंडस्ट्री को बढ़ावा मिलेगा। साथ ही इनको बनाने के लिए कृषि उत्पादों की मांग का लाभ किसानों को मिलेगा। प्रस्तावित नीति में इसी लिए पशुआहार निर्माणशाला पर सरकार ने कई तरह की रियायतों एवं अनुदान का जिक्र किया है।
नस्ल सुधार में होगी महत्वपूर्ण भूमिका

पशुपालन क्षेत्र की वर्तमान समय में सबसे बड़ी चुनौती अनियोजित प्रजनन के कारण मिश्रित नस्ल के पशु खासकर गोवंश हैं। ऐसी नस्लों की दूध देने की क्षमता कम होती है। लिहाजा दूध लेने के बाद लोग इनको पशुपालक छोड़ देते हैं। सूखे के समय (जिस समय दूध नहीं देतीं) तो उनको पूरी तरह छोड़ दिया जाता हैं। खेतीबाड़ी में बैलों का प्रयोग न होने से बछड़े तो छोड़ ही दिए जाते हैं। इस तरह छुट्टा पशु किसानों के लिए एक बड़ी समस्या बन जाते हैं।

दूध के लिए अच्छी नस्ल के बेहतर प्रजाति के गोवंश रखने पर पशुपालक इनकी नस्ल पर ध्यान देंगे। ऐसे में कृत्रिम गर्भाधान (आर्टिफिशियल इंसिमेशन/एआई) की संख्या बढ़ेगी। इससे नस्ल में क्रमशः सुधार होता जाएगा। यही नहीं कुछ पशुपालक एआई की अत्याधुनिक तकनीक सेक्स सॉर्टेड सीमेन वर्गीकृत वीर्य का भी सहारा लेंगे।

अन्ना प्रथा पर भी होगा नियंत्रण

मालूम हो कि इस तकनीक से जिन गायों की एआई होती है उनके द्वारा बछिया जनने की संभावना 90 फीसद से अधिक होती है। इस तरह पैदा होने वाली अच्छी प्रजाति की बछिया को किसान सहेजकर रखेंगे। यही नहीं इस विधा से पैदा होने वाले बछड़े भी बेहतर प्रजाति के होंगे। इनकी भी सीमेन के लिए अच्छे दामों पर मांग होगी। इस तरह धीरे-धीरे सही उत्तर प्रदेश दुग्धशाला विकास एवं दुग्ध उत्पादन प्रोत्साहन नीति अन्ना प्रथा के नियंत्रण में भी मददगार होगी।

इस क्रम में पशु आहार निर्माणशाला इकाई की स्थापना पर प्लांट मशीनरी एवं स्पेयर पार्ट्स और तकनीकी सिविल कार्य के लिए ऋण पर देय ब्याज की दर का 5 प्रतिशत ब्याज उपादान (प्रतिवर्ष अधिकतम 150 लाख रुपये की धनराशि तक) एवं अधिकतम 750 लाख रुपए की धनराशि की सीमा (कुल 5 वर्ष की अवधि में) तक ही अनुमन्यता होगी।

कुपोषण खत्म होने से दूर होगी बांझपन की समस्या

उल्लेखनीय है कि पशुआहार के मुख्य तत्त्व कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन, विटामिन तथा खनिज लवण होते हैं। डेयरी पशु शाकाहारी होते हैं अत: ये सभी तत्व उन्हें पेड़ पौधों से, हरे चारे या सूखे चारे अथवा दाने से प्राप्त होते हैं। इन पशु आहारों में प्रमुख रूप से मक्का, जौ, जई का प्रयोग होता है। इसके अलावा क्षेत्र की उपलब्धता के आधार पर बिनोले सरसों या मूंगफली की खली, गेंहू का चोकर, दाल का चूरा और साधारण नमक आदि का प्रयोग होता है। अमूमन ये उत्पाद वो होते हैं जो इन अनाजों की ग्रेडिंग के बाद बचते हैं।

इस तरह इनकी ग्रेडिंग, पैकिंग, ट्रांपोर्टेशन, लोडिंग एवं अनलोडिंग के क्षेत्र में भी रोजगार के अवसर उपलब्ध होंगे। संतुलित आहार से सिर्फ दुधारू पशुओं का दूध और दूध देने का समय ही नहीं बढ़ेगा। पशुओं के बांझपन की समस्या भी काफी हद तक दूर होगी। शोधों से साबित हो चुका है कि कुपोषण पशुओं के बांझपन की सबसे बड़ी वजह है। और बांझ पशुओं को पशुपालक खुला छोड़ देते हैं।

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