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उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कोरोना महामारी की चुनौती को एक अवसर की तरह देखा और जनता के दिलों में जगह बनाने के लिए खुद सड़क पर उतर आये. शुरुआत में सीएम योगी ने जिस तरह तत्परता दिखाई और व्यवस्थाओं की देखरेख की उसके लिए उनकी जमकर तारीफ भी हुई लेकिन पिछले कुछ दिनों से उनके हर फैसले पर विवाद खड़ा हो जा रहा है.

मजदूरों को घर भेजने के लिए प्रियंका गांधी द्वारा बस भेजने का मामला हो या फिर क्वारंटीन सेंटर में मोबाइल फोन को बैन करने का फैसला इस सभी मामलों में कहीं न कहीं योगी सरकार की फजीहत हुई है.

वहीं अब सीएम योगी के एक और फैसले पर समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने सवाल खड़े कर दिए हैं. दरअसल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रवासी मजदूरों को रोजगार और अन्य सुविधाओं के लिए श्रमिक आयोग बनाए जाने की घोषणा की है.

इसी मामले पर अखिलेश यादव ने ट्वीट कर लिखा है कि, अब श्रमिकों के लिए नया आयोग बनाया जा रहा है जबकि ‘एम्पलॉयमेन्ट एक्सचेंज’ पहले से है. चाहे नीति आयोग हो, नया कोष या अब ये श्रम का विषय; जो है उसका उपयोग न करके हर एक मुद्दे पर कुछ नया बनाने का प्रयास क्यों.

ये सरकार का अपनी असफलताओं से ध्यान हटाने का तरीक़ा व जन-धन का अपव्यय है.

क्यों विवादों में पड़ जाते हैं फैसले

एक के बाद एक योगी सरकार के फैसले जिस तरह से विवादों में पड़ जा रहे हैं उसके पीछे की मुख्य वजह नौकरशाह पर मुख्यमंत्री का अधिक भरोसा करना माना जा रहा है.

युवा पत्रकार और यूपी की राजनीति को करीब से देख रहे अविनाश भदौरिया के मुताबिक, सीएम योगी ने कोरोना से जंग लड़ने के लिए एक टीम का गठन किया था जिसमे उन्होंने अपने मंत्रियों और प्रतिनिधियों की बजाय अधिकारियों को ज्यादा तवज्जो दी. शायद यही वजह है कि नौकरशाह की वजह से इस तरह के फैसले लिए गए जिससे सरकार की छवि ख़राब हुई है.

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