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क्‍या है गोरखपुर का ‘स्टेशनरी मॉडल’, आखिर क्‍यों हो रही है इसकी चर्चा
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लॉकडाउन में लोगों के घर तक तक जरूरी सामान पहुंचाने के मामले में पहचान बना चुके गोरखपुर की शान में और इजाफा हुआ है। ऑनलाइन पढ़ाई के बीच बच्‍चों को कॉपी व किताब पहुंचाने के लिए शहर में ‘स्टेशनरी मॉडल’ लागू किया गया है। ज्वाइंट मजिस्ट्रेट सदर गौरव सिंह सोगरवाल के प्रयासों से शुरू इस व्यवस्था को देश के दूसरे जिले भी लागू करने की तैयारी है। जिलों की ओर से मांग करने के बाद उन्हें इस मॉडल का प्रेजेंटेशन भेजा गया है।

ऑनलाइन पोर्टल शुरू हुआ

किताबों को लेकर बच्‍चों की परेशानी जब ज्वाइंट मजिस्ट्रेट के संज्ञान में आई तो उन्होंने एक मॉडल तैयार किया। इसमें स्टेशनरी के 14 डिस्ट्रिब्यूटर से संपर्क कर उन्हें जोड़ा गया और पांच ऑनलाइन पोर्टल शुरू किए गए। सोमवार तक करीब 23 हजार लोगों तक इस व्यवस्था के तहत किताबें-स्टेशनरी पहुंच चुकी है। तीन मई तक सभी बच्‍चों तक स्टेशनरी पहुंचाने का लक्ष्य है।

सुरक्षा का पूरा ध्यान

डिलीवरी के समय सुरक्षा का पूरा ध्यान रखा जाता है। डिलीवरी करने वाले को मास्क, ग्लव्स व टोपी पहनना अनिवार्य है। सुबह व शाम को उनका तापमान जांचा जाता है।

प्रदेश के लखनऊ, आगरा, कानपुर, मेरठ आदि सहित असम, राजस्थान, झारखंड, तमिलनाडु व केरल राज्यों के करीब 53 जिलों में यह व्यवस्था लागू करने की तैयारी चल रही है।

स्टेशनरी मॉडल को लेकर कई जिलों से जानकारी मांगी गई है, उन्हें प्रेजेंटेशन भेजा गया है। इसके अतिरिक्त गोरखपुर मॉडल की भी मांग बढ़ी है। कई राज्यों सहित भारत सरकार के पेट्रोलियम, वाणिज्य, स्किल डेवलपमेंट एवं जलशक्ति मंत्रालय को प्रेजेंटेशन भेजा जा चुका है। – गौरव सिंह सोगरवाल, ज्वाइंट मजिस्ट्रेट सदर।

ज्वाइंट मजिस्ट्रेट व उप जिलाधिकारी सदर गौरव सिंह सोगरवाल की ओर से लॉकडाउन के दौरान बनाई गई ‘ऑनलाइन डिलीवरी पोर्टल’ मॉडल को पीएमओ (प्रधानमंत्री कार्यालय) सराहना कर चुका है। पीएमओ के निजी सचिव निखिल गजराज ने ज्वाइंट मजिस्ट्रेट को फोन कर शुभकामनाएं दी थी। निजी सचिव ने ‘ऑनलाइन डिलीवरी पोर्टल’ के क्रियान्वयन के बारे में जानकारी मांगा था जिससे इसे पूरे देश में लागू किया जा सके।

इसके अलावा आइएएस एसोसिएशन ने भी गौरव के इस पहल की सराहना की है। ग्रामीण इलाकों में खाद्यान्न समेत जरूरी वस्तुओं की आपूर्ति के लिए 1400 दुकानों की सूची और उनके मोबाइल नंबर को फेसबुक व ग्राम प्रधानों के माध्यमों से गांव-गांव पहुंचाया जा रहा है।

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