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राज्यसभा चुनाव में भाजपा के चक्रव्यूह में फंसी कांग्रेस
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कोरोना वायरस संक्रमण रोकने के लिए लॉकडाउन को लेकर कांग्रेस सरकार को घेरती रही है। पार्टी का सरकार पर निशाना साधना जायज भी है, क्योंकि पार्टी को लॉकडाउन की राजनीतिक कीमत चुकानी पड़ सकती है। लॉकडाउन की वजह से राज्यसभा चुनाव टलने के कारण कई राज्यों में सियासी समीकरण बदल गए। पार्टी को कई राज्यसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ सकता है।

गुजरात में चार सीट पर पांच उम्मीदवार मैदान में हैं। राज्यसभा के लिए कांग्रेस ने दो और भाजपा ने तीन उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं। पिछले दिनों पार्टी विधायकों के इस्तीफे के बाद पार्टी के पास सिर्फ 65 विधायक हैं। पार्टी को भारतीय ट्राइबल पार्टी, एनसीपी और जिग्नेश मेवाणी की वोट का भरोसा है। पर इनके समर्थन के बावजूद जीत के लिए एक वोट की जरुरत है। ऐसे में पार्टी चुनाव प्रबंधन पर पूरा जोर दे रही है। ताकि, 2017 के चुनाव की तरह जीत दर्ज कर सके।

मध्य प्रदेश में भी तीन सीट पर चार उम्मीदवार हैं। कांग्रेस साफ कर चुकी है कि दिग्विजय सिंह पहले और फूल सिंह बरैया दूसरे उम्मीदवार हैं। ऐसे में दिग्विजय सिंह की जीत तय है, पर बरैया का चुनाव फंस सकता है। पार्टी की नजर बसपा के दो, सपा के एक और चार निर्दलीय विधायकों पर है। कांग्रेस को इन सबका समर्थन मिल गया, तो भी उसे जीत के लिए कुछ और विधायकों की जरुरत होगी। मौजूदा राजनीतिक समीकरण में कांग्रेस के लिए समर्थन जुटाना मुश्किल है।

राजस्थान में कांग्रेस ने केसी वेणुगोपाल और नीरज डांगी को उम्मीदवार बनाया है। पार्टी के पास 107 विधायक हैं, इसके साथ पार्टी को 12 निर्दलीय विधायकों का भी समर्थन हासिल है। राज्यसभा की एक सीट के लिए 51 प्रथम वरीयता विधायकों की जरुरत है। ऐसे में इस आंकड़े के साथ पार्टी के लिए दोनों सीट जीतना मुश्किल नहीं है। पर पार्टी को डर है कि कांग्रेस विधायकों ने क्रॉस वोटिंग की और निर्दलीय विधायकों ने पाला बदल लिया, तो मुश्किलें बढ़ सकती है। इस लिए पार्टी ने अपने सभी विधायकों और निर्दलीय एमएलए को होटल में रखने का फैसला लिया है।

झारखंड में कांग्रेस के राज्यसभा उम्मीदवार की किस्मत साथ देती नहीं दिख रही है। निर्दलीय विधायक सरयू राय के समर्थन के बाद भाजपा का पलड़ा भारी दिख रहा है। पार्टी के एक नेता ने कहा कि लॉकडाउन की वजह से राज्यसभा चुनाव नहीं टलता, तो इन राज्यों में राज्यसभा चुनाव के समीकरण नहीं बदलते। क्योंकि, उस वक्त कांग्रेस के पास अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए आंकड़े थे।

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