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भगवान परशुराम को भगवान विष्णु का अवतार भी कहा जाता है। उन्हें भार्गव नाम से भी जाना जाता है। भगवान परशुराम का जन्म अक्षय तृतीया पर हुआ, इसलिए अक्षय तृतीया के दिन भगवान परशुराम की जयंती मनाई जाती है। मान्यता है कि भगवान परशुराम आज भी कहीं तपस्या में लीन हैं।

बचपन में भगवान परशुराम को उनके माता-पिता राम कहकर पुकारते थे। जब वह बड़े हुए तो पिता ने उन्हें भगवान शिव की आराधना करने को कहा। उनके तप से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और असुरों के नाश का आदेश दिया। उन्होंने अपने पराक्रम से असुरों का नाश किया। भगवान शिव ने उन्हें परशु नाम का शस्त्र दिया। यह अस्त्र उन्हें बहुत प्रिय था, इसलिए वह राम से परशुराम हो गए।

महाभारत काल में भीष्म, द्रोण और कर्ण को भगवान परशुराम ने ही शस्त्र विद्या सिखाई थी। पिता की आज्ञा का मान रखने के लिए भगवान परशुराम को अपनी माता का वध करना पड़ा और पिता से ही वरदान मांगकर उन्होंने अपनी माता को पुन: जीवित करा लिया। भगवान परशुराम ने तीर चलाकर समुद्र को पीछे धकेलते हुए नई भूमि का निर्माण किया। उन्होंने यज्ञ के लिए बत्तीस हाथ की सोने की वेदी बनवाई थी। बाद में इसे महर्षि कश्यप ने ले लिया और उन्हें पृथ्वी छोड़कर चले जाने के लिए कहा। भगवान परशुराम ने उनकी बात मान ली और समुद्र को पीछे हटाकर गिरिश्रेष्ठ महेंद्र पर चले गए।

इस आलेख में दी गई जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जिसे मात्र सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।

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